गर्भावस्था और प्रसव के बाद आयुर्वेदिक देखभाल | Ayurvedic care during pregnancy and after childbirth

Pregnant woman

🤰 गर्भावस्था और प्रसव के बाद आयुर्वेदिक देखभाल

गर्भावस्था के 9 महीने (मासानुमासिक पथ्य):

महीना 1-3 (प्रथम तिमाही):

  • ठंडा दूध, मक्खन, घी
  • शतावरी चूर्ण (दूध के साथ)
  • हल्का, सुपाच्य भोजन
  • विश्राम और तनाव मुक्त रहें

महीना 4-6 (द्वितीय तिमाही):

  • मक्खन, दूध, मीठे खाद्य पदार्थ
  • शतावरी + गोक्षुरा
  • बादाम, अखरोट (भिगोकर)
  • हल्का व्यायाम (गर्भिणी योग)

महीना 7-9 (तृतीय तिमाही):

  • घी, दूध, चावल (अधिक मात्रा में)
  • गर्भपाल रस (चिकित्सक से परामर्श)
  • 8वें महीने में एनीमा थेरेपी (वैद्य की देखरेख में)
  • 9वें महीने में योनि की तैलीय मालिश (सुगम प्रसव के लिए)

⚠️ गर्भावस्था में वर्जित:

  • गर्म प्रभाव वाली जड़ी-बूटियां (कलौंजी, मेथी अधिक मात्रा)
  • पपीता, अनानास (गर्भपात का खतरा)
  • अत्यधिक तीखा, खट्टा भोजन
  • भारी व्यायाम, भारी सामान उठाना
  • तनाव, डर, अत्यधिक यात्रा

🍼 प्रसव के बाद (सूतिका पालन - 42 दिन):

आयुर्वेद में प्रसव के बाद 42 दिनों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस समय मां का शरीर कमजोर होता है।

प्रथम सप्ताह:

  • हल्का, तरल भोजन (दाल का पानी, चावल का पानी)
  • अजवाइन + गुड़ का काढ़ा (पेट की सफाई के लिए)
  • पूर्ण आराम, कोई भारी काम नहीं
  • गर्म वातावरण में रहें

सप्ताह 2-6:

  • विशेष लड्डू: गोंद + मेवे + गुड़ के लड्डू (ताकत के लिए)
  • पंचकोल चूर्ण: पाचन सुधार के लिए
  • शतावरी कल्प: दूध बढ़ाने के लिए
  • तैल मालिश: पूरे शरीर की (महानारायण तेल)
  • पेट की बाइंडिंग: पेट को टाइट करने के लिए
  • धूमपान चिकित्सा: योनि और गर्भाशय की सफाई (वैद्य द्वारा)

स्तनपान बढ़ाने के उपाय:

  • शतावरी चूर्ण (2 चम्मच दूध के साथ, दिन में 2 बार)
  • जीरा + सौंफ + धनिया का पानी
  • मेथी के लड्डू या मेथी का हलवा
  • बादाम दूध (रात भर भिगोकर)
  • तिल + गुड़ के लड्डू
  • पपीता, दूध, खजूर का अधिक सेवन

⚠️ महत्वपूर्ण अस्वीकरण

यह जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य के लिए है और व्यावसायिक चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं है। किसी भी आयुर्वेदिक उपचार या औषधि को शुरू करने से पहले हमेशा योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें। गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के लिए तुरंत चिकित्सा सहायता लें। गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं, बच्चे और दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को विशेष रूप से चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता है।

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